बुरी नज़र लगने की 5 खतरनाक निशानियाँ – क्या आपके साथ भी हो रहा है ऐसा? 5 Signs of Nazar Lagna | नज़र, जादू, टोना, बंदिश कैसे पहचानें | Islamic Wazifa & Truth

PART 1: नज़र लगने की पहली निशानी — बार-बार जम्हाई आना

क्या आपको या आपके किसी अपने को बगैर थकान के, बार-बार जम्हाई आती है? अगर हां, तो हो सकता है ये नज़र-ए-बद का असर हो।

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

“जम्हाई शैतान की तरफ़ से होती है, इसलिए जब किसी को जम्हाई आए तो उसे जहां तक हो सके रोकना चाहिए।”
(सहीह मुस्लिम: 2994)

यह हदीस साफ़ इशारा करती है कि जम्हाई सिर्फ जिस्मानी थकावट का नतीजा नहीं, बल्कि ये रूहानी असर भी हो सकता है। खास तौर पर तब, जब इंसान नींद पूरी लेने के बावजूद दिन-भर में बार-बार जम्हाई ले रहा हो।

आज के दौर में, जब सोशल मीडिया, जलन, हसद और नज़रें इतनी तेज़ हो गई हैं — लोग एक-दूसरे की खुशियों को देख नहीं पाते। ऐसे में किसी की कामयाबी, खूबसूरती, नेमतें या सुकून भी दूसरों की नज़र का शिकार बन जाते हैं।

नज़र लगने पर सबसे पहले जो रूहानी असर होता है, वह है बेवजह की जम्हाई।
इंसान खुद हैरान होता है कि वह तो थका भी नहीं, लेकिन जम्हाई रुक नहीं रही।

ऐसे हालात में यह समझ लेना चाहिए कि ये नज़र का असर हो सकता है, और तुरंत अल्लाह की पनाह में आना चाहिए।

इसका इलाज क्या है?

अउज़ु बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम पढ़ें।

तीन बार सूरह फलक और सूरह नास पढ़कर खुद पर दम करें।

रोजाना सुबह और शाम के अज़कार ज़रूर करें।

क्योंकि नज़र का इलाज सिर्फ तावीज़ या झाड़-फूंक नहीं, बल्कि क़ुरआन और सुन्नत के तरीके हैं — जो आज भी उतने ही असरदार हैं जितने पहले थे।

PART 2: नज़र लगने की दूसरी निशानी — आँखों का बेचैन और इधर-उधर भटकना

क्या आपने कभी किसी इंसान को देखा है जो बिना वजह बेचैन हो, उसकी आँखें एक जगह टिकती ही नहीं? वो न इधर पूरा देखता है, न उधर — उसकी निगाहें भटकती रहती हैं, जैसे किसी अंदरूनी बेचैनी से लड़ रहा हो।

ये भी नज़र-ए-बद की एक बड़ी निशानी है।

हदीस में आता है कि:

“अल-ऐनु हक्कुन” — “नज़र लगना हक़ है।”
(सहीह मुस्लिम: 2188)

यह हदीस इस हकीकत को बयान करती है कि नज़र-ए-बद एक सच्चा असर रखती है — और इसका सबसे गहरा असर इंसान के अंदरूनी सुकून पर पड़ता है।

आज की दुनिया में जब इंसान हर वक्त सोशल मीडिया पर दूसरों की खुशियाँ, दौलत, हुस्न और कामयाबियाँ देख रहा है — तो हसद और जैलेसी का माहौल पैदा हो गया है। लोग कमेंट में मुबारकबाद देते हैं लेकिन दिल में जलन होती है। और यही जलन उनकी नज़र बनकर सामने वाले के सुकून को खा जाती है।

जब नज़र लगती है, तो सबसे पहले इंसान की रूह बेचैन होती है। और यह बेचैनी उसकी आँखों से ज़ाहिर होती है।
वो एक जगह बैठा तो होता है, लेकिन निगाहें इधर-उधर भटकती हैं, किसी से नज़रे मिलाने में डर लगता है, और कोई चीज़ दिल को सुकून नहीं देती।

आज के दौर में यही हालत बहुत से बच्चों, नौजवानों और औरतों की हो गई है। नज़र का असर उन्हें ऐसा झंझोड़ता है कि वो अपने हालात खुद नहीं समझ पाते — सिर्फ इतना महसूस करते हैं कि “कुछ ठीक नहीं है।”

इसका इलाज क्या है?

सुबह-शाम की अज़कार को पक्का कर लें।

सूरह अल-फलक और सूरह अन-नास को दिन में कई बार पढ़कर आँखों पर फूंक मारें।

“हसद करने वालों के शर से” बचने की दुआ करें — जैसा कि कुरआन में आया:

“وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ”
“…और हसद करने वाले के शर से जब वो हसद करे।”
(सूरह अल-फलक: 5)

याद रखिए, नज़र सिर्फ जिस्म को नहीं, बल्कि दिल और दिमाग को भी परेशान कर देती है। उसकी सबसे बड़ी निशानी — बेचैन आँखें — हर किसी को नज़र नहीं आती, लेकिन महसूस करने वाले को वो तकलीफ़ साफ़ दिखती है।

PART 3: नज़र लगने की तीसरी निशानी — चेहरे की रौनक और नूर का खत्म हो जाना

इंसान का चेहरा उसका आइना होता है। उसमें उसकी तंदरुस्ती, सुकून, और रूहानी ताक़त की झलक होती है। लेकिन जब किसी को नज़र लगती है, तो सबसे पहले उसका असर चेहरे पर ज़ाहिर होता है।

रौनक गायब हो जाती है, नूर खत्म हो जाता है, चेहरा मुरझाया-मुरझाया सा लगने लगता है।

कुरआन कहता है:

“إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُنَادَوْنَ لَمَقْتُ ٱللَّهِ أَكْبَرُ مِن مَّقْتِكُمْ أَنفُسَكُمْ…”
(सूरह ग़ाफ़िर: 10)

इस आयत का मफ़हूम ये है कि अल्लाह इंसान के ज़ाहिर और बातिन को बख़ूबी जानता है। जब इंसान के अंदर बेचैनी होती है, जब रूहानियत पर वार होता है, तो उसका असर ज़ाहिर भी ज़रूर होता है — और चेहरे से रौनक का उठ जाना उसी असर की निशानी है।

हदीस में आता है:

“अल-ऐनु हक्कुन, ولو کان شیء یسبق القدر لسبقته العین…”
“नज़र लगना हक़ है, अगर कोई चीज़ तक़दीर से आगे जा सकती, तो वह नज़र होती।”
(सहीह मुस्लिम)

आज की दुनिया में, जब लोग सोशल मीडिया पर अपनी खुशियाँ, दौलत, शादी-ब्याह, बच्चों की तस्वीरें, कामयाबी, और सुकून का खुलकर इज़हार करते हैं — तो बहुत सी नज़रों का शिकार हो जाते हैं।
कभी-कभी ये नज़र देखने वालों की मुहब्बत भरी नहीं, बल्कि जलन भरी होती है — जो सीधा असर डालती है चेहरे के नूर पर।

आपने देखा होगा कि कोई बच्चा या नौजवान अचानक ही बीमार लगने लगता है, रंगत पीली हो जाती है, चेहरे से ज़िन्दगी गायब लगती है — डॉक्टर भी कुछ समझ नहीं पाते।
असल में ये नज़र का रूहानी असर होता है।

इसका इलाज क्या है?

रोज़ सुबह-शाम सूरह फातिहा, सूरह फलक, सूरह नास, और आयतुल कुर्सी पढ़कर दम करें।

ज़मज़म का पानी या पानी पर दम करके रोज़ पीएं।

किसी सच्चे अल्लाह वाले से दुआ कराएं।

घर में हसद से बचने का माहौल रखें — दिखावे से बचें, खुशियाँ छुपाकर मनाएं।

याद रखिए, रौनक सिर्फ मेकअप या स्किन टोन से नहीं आती — असल नूर अल्लाह से मिलता है। और जब नज़र लगती है, तो वो नूर सबसे पहले छिनता है।

PART 4: नज़र लगने की चौथी निशानी — हर वक्त नींद आना, हर जगह सो जाना

जब इंसान को नज़र लगती है, तो उसका जिस्म सिर्फ बीमार नहीं होता — उसकी रूह पर एक अलैहदा सुस्ती और थकावट तारी हो जाती है।
और यही सुस्ती उसे हर वक़्त नींद में डुबो देती है — इतना कि वो रास्ते में, सफर में, काम करते वक्त, खाते-पीते, यहां तक कि बैठते-बैठते कुर्सी पर ही सो जाता है।

ये कोई आम नींद नहीं होती — ये नज़र की लगी हुई एक ग़ैर-मामूली सुस्ती होती है।

हदीस में आता है:

“العين حق، تحضر الرجل في القبر وتحضر الجمل في القدر”
“नज़र हक़ है, ये इंसान को क़ब्र में और ऊंट को देग में पहुँचा देती है।”
(अल-मुस्तदरक, हाकिम)

इसका मतलब ये है कि नज़र का असर इतना गहरा होता है कि वो इंसान की ज़िंदगी को झकझोर देती है — और नींद का हर वक्त हावी हो जाना उसी का हिस्सा है।

आज के दौर में, लोग थकान, मोबाइल की लत, और डिप्रेशन को इस हालत की वजह मानते हैं — लेकिन जब डॉक्टरी इलाज काम नहीं करता, और कोई बड़ी बीमारी भी नहीं होती — तो समझ जाइए कि ये रूहानी असर है, और नज़र लगी हो सकती है।

आपने देखा होगा कि कोई बच्चा पहले हंसता-खेलता था, लेकिन अब स्कूल में या खेलने के बजाय बस सोता रहता है।
कोई नौजवान काम में तेज़ था, अब दफ़्तर में, सफर में या मस्जिद में भी नींद से लड़ता नज़र आता है।
कोई लड़की जो पहले घर के कामों में एक्टिव थी, अब ज़रा सी बात पर लेट जाती है, थकी-थकी रहती है — ये सब नज़र के असर की निशानियाँ हो सकती हैं।

इसका इलाज क्या है?

रात में सोने से पहले सूरह मुल्क और आयतुल कुर्सी पढ़ें।

दिन में तीन बार “अعوذ بكلمات الله التامات من شر ما خلق” पढ़ें।

नींद आने पर सूरह फ़लक और सूरह नास पढ़कर दम करें।

ज़रूरत हो तो रूकीया शरईया (शरीअत के मुताबिक़ इलाज) का सहारा लें।

याद रखिए, नींद अल्लाह की नेमत है, लेकिन जब वो हद से बढ़ जाए — तो ये एक रूहानी खतरे का संकेत है। और नज़र का असर अक्सर इसी शक्ल में सामने आता है।

PART 5: नज़र लगने की पाँचवीं निशानी — आँखों से बेवजह आँसू आना

इंसान की आँखें उसकी रूह का आइना होती हैं। रूहानी सुकून हो तो आँखों में चमक होती है। लेकिन जब नज़र लगती है, तो सबसे नाज़ुक जगहों में से एक — आँखों पर असर पड़ता है।

एक बड़ी निशानी ये होती है कि इंसान की आँखों से बात करते वक़्त अचानक आँसू निकल आते हैं — जबकि न कोई ग़म की बात हो रही है, न कोई दर्द, न कोई दुख, फिर भी आँखें भीग जाती हैं।

यह भी नज़र का असर होता है।

हदीस शरीफ में हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु का एक वाक़िआ आता है —
जब एक सहाबी ने किसी दूसरे सहाबी की कुव्वत और हुस्न की तारीफ़ की, तो वो सहाबी अचानक बीमार हो गए। नबी करीम ﷺ ने फरमाया:

“तुमने उसे क्यों नहीं दुआ दी? क्या तुम नहीं जानते कि नज़र लगना हक़ है?”
(सहीह मुस्लिम)

आज के दौर में, जब लोग जलन, हसद और बेवजह निगाहों से दूसरों को देखते हैं — तो वो नज़रों का वार इतना गहरा होता है कि जिस्म के साथ-साथ रूह भी बेचैन हो जाती है।
और जब रूह पर बोझ बढ़ता है, तो उसका असर आँखों से बहने वाले आँसुओं के ज़रिए बाहर आता है।

कभी आपने देखा होगा — कोई बच्चा हंसते-हंसते अचानक रोने लगता है।
कोई इंसान बात कर रहा होता है, लेकिन बिना दर्द या इमोशनल वजह के उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।
कोई बीवी अपने शौहर से कुछ बात कर रही होती है — और कहते-कहते आँखें भीग जाती हैं।

डॉक्टर पूछते हैं, “आँखों में एलर्जी तो नहीं?”
लेकिन असल में ये ना-दीखने वाली नज़र का तीर होता है, जो आँखों को गिरफ़्त में ले लेता है।

इलाज क्या है?

सूरह फलक, सूरह नास, और आयतुल कुर्सी सुबह-शाम दम करें।

ज़मज़म या पाक पानी पर दम करके आँखों पर हल्का सा मसह करें।

आँखों से आँसू आएँ तो “اللهم أذهب البأس رب الناس اشف أنت الشافي لا شفاء إلا شفاؤك شفاء لا يغادر سقما” पढ़ें।

अपने ऊपर दम करवाएं और नज़र का तोड़ करवाएं।

याद रखिए, आँखें बेवजह रोती नहीं। जब रूह पर वार हो रहा होता है, तो आँखें उसके असर को बाहर निकालती हैं।
और नज़र का सबसे नर्म और खामोश वार — आँखों के आँसू होते हैं।

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