
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामु अलैकुम
अस्सलामु अलैकुम प्यारे दोस्तों!
आज की इस वीडियो में हम आपको तीन ऐसी औरतों के बारे में बताने वाले हैं जिनका रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना हराम है। यानी कि इन तीनों औरतों पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं है, बल्कि उनके लिए मना किया गया है। ये तीनों औरतें किसी भी हाल में रमज़ान के महीने में रोज़ा नहीं रख सकतीं। अगर इनमें से किसी औरत ने रोज़ा रख लिया, तो याद रखें कि ऐसी औरत का रोज़ा नहीं होगा और साथ ही हम आपको औरतों से जुड़ी कुछ खास बातें भी बताएंगे, जिनका जानना आप सभी के लिए बेहद ज़रूरी है।
इसलिए, इस वीडियो को आखिर तक ज़रूर देखें और मेहरबानी करके इसे शेयर करें, ताकि रमज़ान के इस मुबारक महीने में यह वीडियो ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों तक पहुंचे।
रोज़ा किन पर फ़र्ज़ है?
इस्लाम में रोज़ा हर उस मुसलमान पर फ़र्ज़ है जो:
- बालेग़ (व्यस्क) हो – यानी जो बच्चे या नाबालिग़ नहीं हैं।
- अक़लमंद हो – यानी जो पागल या बेहोश रहने वाला न हो।
- सेहतमंद हो – यानी बीमार न हो।
- मुक़ीम (मुसाफ़िर न हो) – यानी जो सफर में न हो।
अगर कोई बीमार हो या सफर में हो, तो उसे इस दौरान रोज़ा न रखने की इजाज़त है, लेकिन बाद में उसकी क़ज़ा करनी होगी।
तीन औरतें जिनका रोज़ा रखना हराम है:
- हैज़ (मासिक धर्म) वाली औरत:
वह औरत जिसे मासिक धर्म (पीरियड्स) आ रहे हों, उसके लिए रमज़ान में रोज़ा रखना हराम है। ऐसी औरत का रोज़ा कबूल नहीं होगा और उसे बाद में उन रोज़ों की क़ज़ा करनी होगी।
अगर किसी औरत ने सहरी करके रोज़ा रखा और दिन में उसका मासिक धर्म शुरू हो गया, तो उसका रोज़ा टूट जाएगा और उसे बाद में इसकी क़ज़ा करनी होगी।
लेकिन याद रखें, ऐसी औरत को दूसरों के सामने खाने-पीने से परहेज़ करना चाहिए, ताकि रमज़ान का अदब (सम्मान) बना रहे।
- निफ़ास (बच्चे के जन्म के बाद की हालत) वाली औरत
वह औरत जिसने हाल ही में बच्चा जना हो और उसके बदन से खून आ रहा हो, उसे निफ़ास कहते हैं। ऐसी औरत का रोज़ा रखना भी हराम है। जब तक निफ़ास का खून बंद न हो जाए और वह पाक न हो जाए, तब तक वह रोज़ा नहीं रख सकती।
अगर किसी औरत ने बच्चे के जन्म के बाद निफ़ास की हालत में रोज़ा रख लिया, तो वह रोज़ा नहीं होगा और उसे बाद में क़ज़ा करनी होगी।
- हामिला (गर्भवती) और दूध पिलाने वाली औरत:
गर्भवती और दूध पिलाने वाली औरतों के लिए रोज़ा हराम तो नहीं है, लेकिन अगर रोज़ा रखने से उन्हें या उनके बच्चे को नुकसान पहुंचने का खतरा हो, तो उन्हें छूट दी गई है कि वे रोज़ा छोड़ सकती हैं।
अगर किसी माहिर डॉक्टर का यह कहना हो कि रोज़ा रखने से मां या बच्चे की जान को खतरा हो सकता है, तो ऐसी औरत के लिए रोज़ा छोड़ना जायज़ है। लेकिन बाद में उन रोज़ों की क़ज़ा करनी होगी।
किन औरतों के लिए रोज़ा माफ़ है?
- बहुत बुज़ुर्ग और कमजोर औरतें, जो रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखतीं, उन्हें रोज़ा छोड़ने की इजाज़त है। लेकिन उन्हें हर रोज़े के बदले एक मिस्कीन (ग़रीब) को खाना खिलाना होगा।
- बीमार औरतें, जो ऐसी बीमारी में हैं जिससे रोज़ा रखना उनके लिए मुश्किल हो, वे भी रोज़ा छोड़ सकती हैं और बाद में क़ज़ा कर सकती हैं।
- सफ़र में होने वाली औरतें, यानी जो सफर में हैं, उन्हें भी रोज़ा न रखने की इजाज़त है, लेकिन उन्हें बाद में इसकी क़ज़ा करनी होगी।
रमज़ान में किन लोगों की बख़्शिश नहीं होती?
रमज़ान रहमत और मग़फ़िरत का महीना है, लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी बख़्शिश (माफ़ी) रमज़ान के महीने में भी नहीं होती:
- रिश्तों को तोड़ने वाला – जो अपने रिश्तेदारों से झगड़ता है और परिवार में फूट डालता है।
- हसद (जलन) और नफरत करने वाला – जो दूसरों से नफ़रत करता है और उन्हें तकलीफ देता है।
- मां-बाप का नाफ़रमान – जो अपने माता-पिता की इज़्ज़त नहीं करता, उनके दिल को दुखाता है।
- नशा करने वाला – जो शराब, जुआ और नशे की आदतों को नहीं छोड़ता।
अल्लाह से दुआ:
अल्लाह तआला हमें रमज़ान की बरकतों से मालामाल करे, हमें पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबंदी करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, और हमें सच्चे दिल से तौबा करने की तौफ़ीक़ दे। आमीन! آمین!
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हम मिलते हैं अगली वीडियो में, तब तक के लिए अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू!