
जुम्मा मुबारक: बरकत, दुआ, और परेशानियों से निजात का मुबारक दिन
इस्लाम एक मुकम्मल ज़िंदगी का निज़ाम है और इसमें हफ़्ते के हर दिन की एक अहमियत है, लेकिन जुम्मा का दिन उन तमाम दिनों में सबसे ज़्यादा अफ़ज़ल और मुक़द्दस माना गया है। यह दिन ना सिर्फ इबादत का, बल्कि दुआओं की कुबूलियत, रिज़्क़ में बरकत, मुसीबतों से निजात, और दुश्मनों के शर से हिफाज़त का ज़रिया है। यह दिन हर मोमिन के लिए रहमतों और मग़फ़िरत की चाबी है।
इस post में हम जानेंगे कि जुम्मे के दिन की क्या फज़ीलत है, कौन से वज़ीफे और दुआएं इस दिन पढ़ी जानी चाहिए, और किस तरह से इंसान अपनी परेशानियों, बीमारियों, जादू-टोने, तंगी, बेरोजगारी, घर-गृहस्थी के मसाइल, मकान, गाड़ी, कारोबार, शादी-ब्याह जैसी मुश्किलों का हल पा सकता है।
जुम्मे की फज़ीलत कुरआन और हदीस की रौशनी में
कुरआनी हुक्म:
अल्लाह तआला कुरआन में इरशाद फ़रमाता है:
“ऐ ईमान वालों! जब जुमे के दिन नमाज़ के लिए पुकारा जाए, तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ दौड़ पड़ो और कारोबार छोड़ दो। यही तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो।” (सूरतुल-जुमुआ: 9)
हदीस की रौशनी में:
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:
“जुम्मा दिनों का सरदार है और अल्लाह के नज़दीक सबसे अज़ीज़ दिन है। इसी दिन आदम (अलैहिस्सलाम) पैदा किए गए, इसी दिन उनकी रूह क़ब्ज़ की गई, इसी दिन सूर फूंका जाएगा और इसी दिन लोग बेहोश होंगे।” (सुनन अबू दाऊद)
एक और हदीस में है:
“इस दिन एक घड़ी ऐसी है कि अगर कोई मुसलमान उस वक़्त में अल्लाह से कोई भी हलाल चीज़ मांगे, तो अल्लाह उसे ज़रूर अता करता है।” (सहीह मुस्लिम)
जुम्मा: दुआ की कुबूलियत का खास वक़्त
जुमा के दिन की आख़िरी घड़ियों (असर से लेकर मग़रिब तक) को दुआ के लिए सबसे ज्यादा मुफीद वक्त माना गया है।
इस वक़्त में की गई दुआएं बहुत जल्दी कुबूल होती हैं, बशर्ते दिल से मांगी जाएं।
असरदार दुआ:
“या अल्लाह! जो तेरा दरवाज़ा खटखटाए, तू उसे खाली हाथ न लौटा, मेरी दुआओं को अपने करम से कुबूल फ़रमा।”
परेशानियों से निजात के लिए जुम्मे के खास वज़ीफ़े
- तंगी और बेरोज़गारी से निजात के लिए:
सूरह वाकिया (सूरह 56) जुम्मे की सुबह पढ़ें।
100 मर्तबा पढ़ें: “या वासिअर-रिज़्क़, इर्ज़ुक़नी”
नमाज़ के बाद सच्चे दिल से दुआ करें:
“या रब्बी! मुझे तंगी से निजात दे, हलाल रोज़ी अता फ़रमा, और मुझे दूसरों का मोहताज न बना।”
- बीमारियों से शिफा के लिए:
सूरह फातिहा, सूरह इख़लास, सूरह फ़लक, सूरह नास – तीन-तीन बार पढ़कर पानी पर दम करें और मरीज़ को पिलाएं।
11 बार पढ़ें: “या शाफ़ी, या काफ़ी”
- जादू, टोटका, बंदिश और दुश्मनों से हिफाज़त:
जुम्मे की रात सूरह बकरा की तिलावत करें या कम से कम आयतुल कुर्सी, सूरह फलक और नास को 7 बार पढ़ें।
41 बार पढ़ें: “हस्बुनल्लाहु व नि’मल वकील”
दुआ:
“या अल्लाह! मुझे हर ज़ाहिरी और बातिनी शर से बचा, हर जादू और साज़िश को नाकाम बना।”
- घर, मकान, गाड़ी और कारोबार में बरकत के लिए:
हर जुम्मा सूरह सूरा (सूरह 42) की तिलावत करें।
100 बार पढ़ें: “या मुग़नी, या वह्हाब”
दुआ करें:
“या अल्लाह! मेरे कारोबार, घर, गाड़ी, दुकान, नौकरी हर चीज़ में बरकत अता फ़रमा और मुझे रिज़्क़-ए-हलाल से मालामाल फ़रमा।”
जुम्मे की तैयारियां और सुन्नतें
- नहाना (ग़ुस्ल करना)
- साफ़ कपड़े पहनना (सफेद कपड़े अफज़ल)
- इत्र लगाना (बिना अल्कोहल वाला)
- मस्जिद जल्दी जाना
- खुत्बा ग़ौर से सुनना
- दरूद शरीफ़ की कसरत करना
दरूद शरीफ़ का फज़ीलत:
“जो शख्स जुम्मे के दिन मुझ पर 100 बार दरूद भेजेगा, अल्लाह उसकी 100 हाजतों को पूरा करेगा।” (सुनन बैयहकी)
जुम्मे की रात की अहमियत (शब-ए-जुम्मा)
शब-ए-जुम्मा को इबादत में गुज़ारना, सूरह यासीन, सूरह मुल्क और दरूद शरीफ़ पढ़ना, बेशुमार अज्र का सबब बनता है।
रात को दो रकात नफ्ल पढ़ें, हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 11 बार सूरह इख़लास पढ़ें, फिर दुआ करें।
जुम्मे के दिन का मुकम्मल वज़ीफ़ा
- सुबह-सुबह सूरह वाकिया की तिलावत
- नहाना और पाक-साफ़ कपड़े पहनना
- इत्र लगाना और जल्दी मस्जिद जाना
- खुत्बा ग़ौर से सुनना
- जुमे की नमाज़ के बाद 100 बार “या रहमानु” पढ़ना
- असर और मग़रिब के बीच की दुआ का खास वक़्त
- 100 बार “या बासितु, या फत्ताहु” पढ़ना
- हर नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी और सूरह फलक-नास
- रात को तहज्जुद और दो रकात नफ्ल नमाज़ के बाद दुआ
नफ्स और दिल की बीमारियों का इलाज
अगर किसी को ग़ुस्सा, हसद, तकब्बुर, ग़लत आदतें, नाफरमानी, तौबा से दूरी हो – तो जुम्मा खुद एक इलाज है।
कुरआन की तिलावत, ज़िक्र, दरूद शरीफ़ और गुनाहों से तौबा इंसान को फिर से सीधा रास्ता दिखा सकती है।
मकान और घर से जुड़ी बंदिशों के लिए खास अमल
हर जुम्मे के दिन घर में सूरह बकरा की तिलावत करें।
नमाज़-ए-जुमा के बाद 41 बार “या नाफिअ” पढ़ें और घर के चारों कोनों में फूंक मारें।
जुम्मा: हर मसले का हल
शादी नहीं हो रही? जुम्मे के दिन 111 बार “या वदूदु” पढ़ें।
संतान नहीं हो रही? 21 बार सूरह अंबिया की आयत 89 पढ़ें:
“रब्बि ला तज़र्नी फ़रदं व अंता खैरुल-वारिसीन”
नौकरी नहीं मिल रही? 100 बार “या रज्जाकु” पढ़ें।
: जुम्मा रहमत का समंदर है
अगर कोई इंसान सच्चे दिल से जुम्मे की अहमियत को समझ ले, इसे अपना ले, और इसका पूरा फायदा उठाए – तो वह ना सिर्फ दीन की कामयाबी हासिल करता है बल्कि दुनिया के हर मसले में अल्लाह की मदद का हक़दार बन जाता है।
जुम्मा मुबारक – अल्लाह से दुआ है कि आपका हर जुम्मा बरकतों से भरपूर हो।
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