
ईद मिलादुन्नबी ﷺ की अहमियत
🌙 रबीउल अव्वल का महीना
इस्लामी कैलेंडर में बारहवाँ महीना रबीउल अव्वल है। यह महीना मुसलमानों के लिए बेहद अहम और बरकतों वाला है। इसी महीने में सैय्यदुल अंबिया, रहमतुल-लिल-आलमीन, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की पैदाइश हुई।
कुरआन करीम में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:
وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِّلْعَالَمِينَ
“और हमने आपको (ऐ नबी ﷺ) तमाम जहानों के लिए रहमत बनाकर भेजा।”
(सूरह अल-अंबिया, 21:107)
यह आयत साफ़ बताती है कि नबी-ए-पाक ﷺ की आमद दुनिया के लिए सबसे बड़ी रहमत है।
🌹 १२ रबीउल अव्वल का दिन
उलमा और मुहद्दिसीन की एक बड़ी जमाअत के मुताबिक़, १२ रबीउल अव्वल को हुज़ूर ﷺ की पैदाइश हुई। यही दिन उम्मत-ए-मुस्लिमा के लिए ईद मिलादुन्नबी ﷺ के नाम से जाना जाता है।
हज़रत इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
“उस दिन रोज़ा रखो जिस दिन मैं पैदा किया गया।”
(शरहुज़ ज़रकानी अला अल-मवाहिब, जिल्द 1, सफ़ा 355)
इस हदीस से साबित होता है कि हुज़ूर ﷺ ने अपनी पैदाइश के दिन की अहमियत खुद बयान की और उम्मत को यह सीख दी कि इस दिन शुकर अदा करना और इबादत करना अफ़ज़ल है।
🌟 पैदाइश-ए-नबी ﷺ की खुशी
नबी-ए-पाक ﷺ की आमद सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए सबसे बड़ी नेमत है।
इस दिन दुनिया से जहालत की तारीक़ियाँ ख़त्म होने लगीं।
अल्लाह की तौहीद का पैग़ाम बुलंद हुआ।
इंसानियत को हक़ और इंसाफ़ की तरफ़ राहनुमाई मिली।
इसीलिए १२ रबीउल अव्वल को मुसलमान इबादत, दुआ, दुरूद शरीफ़, सीरत-ए-नबी ﷺ के बयान और गरीबों को खाना खिलाने जैसे नेक काम करके अपनी मोहब्बत का इज़हार करते हैं।
🕯️ ईद मिलादुन्नबी ﷺ – एक मुकद्दस मौका
ईद मिलादुन्नबी ﷺ सिर्फ एक तारीख़ याद करने का नाम नहीं है, बल्कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि:
- हम अल्लाह की उस नेमत का शुक्र अदा करें, जिसने हमें सबसे अज़ीम नबी ﷺ अता फ़रमाया।
- हम अपने दिलों में मोहब्बत-ए-रसूल ﷺ को और मज़बूत करें।
- हम अपने अ’माल और ज़िंदगी को नबी ﷺ की सीरत के मुताबिक़ बनाएँ।
- हम उम्मत में भाईचारे, मोहब्बत और इंसाफ़ को फैलाएँ।
📌 कुरआन से इस दिन की अहमियत
हालाँकि कुरआन में “१२ रबीउल अव्वल” का नाम नहीं लिया गया, मगर नबी-ए-पाक ﷺ की पैदाइश और उनकी नुबुव्वत का ज़िक्र बार-बार आया है।
जैसे कि अल्लाह फ़रमाता है:
لَقَدْ مَنَّ اللَّهُ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولًا مِّنْ أَنفُسِهِمْ
“अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा एहसान किया जब उसने उन्हीं में से एक रसूल भेजा।”
(सूरह आले-इमरान, 3:164)
इस आयत में साफ़ लिखा है कि नबी ﷺ की आमद अल्लाह का एहसान है, और एहसान का शुक्र अदा करना फ़र्ज़ है। इसलिए इस दिन अल्लाह का शुक्र अदा करना और खुशी मनाना बिल्कुल जाइज है।
🌸 उलमा का नज़रिया
कई बड़े-बड़े उलमा-ए-किराम जैसे इमाम जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाह अलैह, इमाम इब्ने हज्जर मक़रीज़ी रहमतुल्लाह अलैह, और मुफस्सिरीन ने लिखा है कि मिलाद-ए-नबी ﷺ मनाना जाइज और मुस्तहब्ब (अच्छा अमल) है, बशर्ते कि उसमें कोई ग़लत या हराम काम न हो।
2- पैदाइश-ए-नबी ﷺ और उस वक़्त के चमत्कार
🌙 नबी-ए-पाक ﷺ की पैदाइश की तारीख़
अधिकतर उलमा और मुहद्दिसीन के मुताबिक़, नबी-ए-करम ﷺ की पैदाइश १२ रबीउल अव्वल, आम-उल-फील (हाथियों वाले साल) को, सोमवार के दिन, सुबह-सवेरे मक़्क़ा मुक़र्रमा में हुई।
हज़रत इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
“रसूलुल्लाह ﷺ सोमवार के दिन पैदा किए गए, सोमवार ही को नुबुव्वत अता की गई, सोमवार को मक्का से हिजरत की, सोमवार को मदीना पहुँचे और सोमवार ही को आप ﷺ का विसाल हुआ।”
(इमाम अहमद, मुस्नद; बैहक़ी, दलाइल-ए-नुबुव्वत)
🌹 पैदाइश के वक़्त के खास वाक़ियात
नबी-ए-पाक ﷺ की आमद पर पूरी दुनिया में अजीब-o-ग़रीब निशानियाँ और करामात ज़ाहिर हुईं। उलमा और तवारीख़ की किताबों में यह तफ़सील मिलती है:
1️⃣ सैय्यदा आमिना रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान
हुज़ूर ﷺ की वालिदा, सैय्यदा आमिना रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं:
“जब आप ﷺ पैदा हुए तो मेरे पेट से एक ऐसा नूर (रोशनी) निकला, जिससे शाम (सिरिया) के महल रौशन हो गए।”
(इमाम अहमद, मुस्नद; दलाइल-ए-नुबुव्वत)
2️⃣ क़िस्रा (फ़ारस के बादशाह) का महल हिल गया
इतिहास में आता है कि उसी रात फ़ारस के बादशाह क़िस्रा का महल काँप उठा और उसके 14 बुर्ज़ गिर पड़े। यह इस बात की निशानी थी कि जल्द ही उसकी हुकूमत का अंत होगा।
3️⃣ आग का बुझ जाना
फारसियों के मज़हब में एक आग थी जो हजारों सालों से लगातार जल रही थी और वह उनकी पूजा का हिस्सा थी। पैदाइश-ए-नबी ﷺ की रात वह आग अचानक बुझ गई।
4️⃣ दरिया-ए-सावा का सूख जाना
सावा नामक एक बड़ा दरिया था, जो उसी रात सूख गया। यह भी इस बात की अलामत थी कि झूठे मज़ाहिब का अंत और हक़ का ज़हूर होने वाला है।
5️⃣ आसमान में सितारों की हरकत
मोहद्दिसीन लिखते हैं कि उस रात आसमान में चमकदार सितारे और एक अलग तरह की रौशनी देखी गई।
🌸 हुज़ूर ﷺ की बचपन की पाकीज़गी
बचपन से ही आपके सीने में नूर और दिल में सुकून था।
आप कभी शिर्क या बुतपरस्ती के पास नहीं गए।
छोटे से ही आप पर अल्लाह की हिफाज़त थी।
🌟 सीरत-ए-नबी ﷺ की पैदाइश से सबक़
- अल्लाह ने नबी ﷺ की आमद के वक़्त दुनिया को अजीब अलामतों से सजाया।
- यह बताने के लिए कि अब वह शख़्स आया है जिसकी वजह से हक़ और इंसाफ़ कायम होगा।
- यह दिन हमारे लिए अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत की याद है। 3 : बचपन और नौजवानी-ए-नबी ﷺ
🌸 बचपन की शुरुआत
हुज़ूर-ए-अकरम ﷺ का बचपन बहुत ही अनोखा और अल्लाह की हिफ़ाज़त में गुज़रा। आपके वालिद हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु आपकी पैदाइश से पहले ही इंतिक़ाल कर गए थे, और जब आप केवल 6 साल के थे, तो आपकी वालिदा सैय्यदा आमिना रज़ियल्लाहु अन्हा भी इस दुनिया से रुख़्सत हो गईं।
इस तरह आप ﷺ यतीम हो गए। मगर अल्लाह तआला ने आपके लिए हिफ़ाज़त का ख़ास इंतिज़ाम किया।
कुरआन करीम में है:
أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَى
“क्या उसने (अल्लाह ने) आपको यतीम नहीं पाया, फिर आपको पनाह दी।”
(सूरह अद-दुहा, 93:6)
🌹 दाई हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा
अरब के रिवाज के मुताबिक़, छोटे बच्चों को दूध पिलाने और परवरिश के लिए गाँव में भेजा जाता था।
हुज़ूर ﷺ को सैय्यदा हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा की गोद मिली।
उनकी ज़ुबान से मशहूर है कि:
जब मैंने मुहम्मद ﷺ को गोद में लिया तो मेरे घर की हालत बदल गई।
मेरा ऊँटनी का दूध बढ़ गया, बकरियों में बरकत हो गई और हमारे घर में खुशहाली आ गई।
यह पैग़म्बर ﷺ की पैदाइश से जुड़ी करामातों में से एक है।
🌟 सीना-ए-मुबारक का शक्क-ए-सदर
जब आप ﷺ छोटे थे, तो एक बार फरिश्ते आए और आपके सीने को चीरकर दिल को धोया और उसमें से ग़ैर ज़रूरी हिस्से निकाल दिए। फिर दिल को नूर और हिकमत से भर दिया।
यह वाक़िया आपकी पाकीज़गी और नुबुव्वत की तैयारी की अलामत था।
(सहीह मुस्लिम, किताबुल ईमान)
🕯️ नौजवानी की ज़िंदगी
नबी-ए-पाक ﷺ की नौजवानी भी बहुत ही पाक-साफ़ और अद्वितीय थी।
1️⃣ अल-अमीन और अस-सादिक़
बचपन से लेकर नौजवानी तक लोग आपको अस-सादिक़ (सच्चा) और अल-अमीन (अमानतदार) कहते थे।
मक़्क़ा के लोग अपने कीमती सामान आपकी अमानत में रख देते थे।
2️⃣ गुनाहों से पाक
आप ﷺ कभी शराब, जुआ या बुतपरस्ती के पास भी नहीं गए।
किसी गुनाह या गलत काम में शरीक नहीं हुए।
3️⃣ मेहनत और कारोबार
छोटी उम्र में आपने बकरियाँ चराईं।
फिर आप ﷺ ने कारोबार किया और सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का सामान लेकर व्यापार किया।
आपने हमेशा ईमानदारी से कारोबार किया।
🌸 सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह
जब आपकी उम्र 25 साल की हुई, तो आपके अच्छे अख़लाक और सच्चाई देखकर सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपसे निकाह कर लिया।
यह निकाह इस्लामी इतिहास का अहम मोड़ है, क्योंकि उन्हीं की मदद और तसल्ल्ली से नुबुव्वत के शुरुआती दिनों में आपको बहुत सहारा मिला।
🌟 सबक़
- नबी ﷺ का बचपन और नौजवानी हमें बताती है कि पाकीज़गी और सच्चाई इंसान की असली पहचान है।
- मोहब्बत-ए-रसूल ﷺ का तक़ाज़ा है कि हम अपने बच्चों को भी हलीमा सादिया जैसी पाक लोगों की कहानियाँ सुनाएँ।
- नौजवानी के दौर में गुनाहों से बचना और अमानतदार बनना सीरत-ए-नबी ﷺ का हिस्सा है। 4 : नुबुव्वत से पहले की ज़िंदगी और ग़ार-ए-हिरा में पहली वही
🌸 नुबुव्वत से पहले का दौर
नबी-ए-पाक ﷺ की उम्र जब 25 से 40 साल तक पहुँची, तो आपका किरदार, आपकी सच्चाई और अमानतदारी पूरे मक़्क़ा में मशहूर हो चुकी थी।
लोग आपको “अस-सादिक़” (सच्चे) और “अल-अमीन” (अमानतदार) के नाम से पुकारते थे।
1️⃣ काबा की तामीर का वाक़िया
जब मक़्क़ा में काबा की दीवार गिर गई और लोग उसे दोबारा बनाने लगे, तो हजरे-असवद (काला पत्थर) को अपनी जगह रखने का झगड़ा खड़ा हुआ।
हर क़बीला चाहता था कि यह काम उसका सरदार करे।
उस वक़्त नबी ﷺ ने हिकमत से काम लिया:
आपने एक चादर बिछाई।
हजरे-असवद को उस पर रखा।
हर क़बीले के सरदार को कहा कि वह चादर के कोनों को पकड़कर उठाए।
फिर आपने ﷺ खुद अपने मुबारक हाथों से हजरे-असवद को उसकी जगह रख दिया।
इस तरह एक बड़ा फ़साद आपके अख़लाक़ और हिकमत से ख़त्म हो गया।
यह वाक़िया आपकी नुबुव्वत से पहले ही आपके “रहमतुल-लिल-आलमीन” होने का सबूत था।
🌙 तन्हाई और तफ़क्कुर की आदत
नुबुव्वत से पहले आप ﷺ को ग़ार-ए-हिरा (मक़्क़ा के पास एक पहाड़ की गुफा) बहुत पसंद थी।
आप वहाँ तन्हाई में बैठकर:
अल्लाह की याद करते,
जहालत और बुतपरस्ती की तारीक़ियों पर ग़ौर करते,
और इंसानियत की हालत देखकर अल्लाह की रहमत के लिए दुआ करते।
यह सब आपकी रूहानी तैयारी थी।
🌟 पहली वही (वह्यू) का आग़ाज़
जब आपकी उम्र 40 साल हुई, तो रमज़ान की एक रात ग़ार-ए-हिरा में आपके पास हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम आए।
उन्होंने कहा:
اِقْرَأْ
“पढ़ो।”
आप ﷺ ने फ़रमाया:
“मैं पढ़ना नहीं जानता।”
हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने आपको तीन बार दबाया और फिर कहा:
اِقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ، خَلَقَ الْإِنسَانَ مِنْ عَلَقٍ، اِقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُ، الَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ، عَلَّمَ الْإِنسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ
“पढ़ो अपने उस रब के नाम से जिसने पैदा किया। उसने इंसान को जमे हुए ख़ून से पैदा किया। पढ़ो! और तुम्हारा रब बड़ा ही करम करने वाला है। जिसने क़लम के ज़रिए इल्म सिखाया। इंसान को वह सिखाया जो वह नहीं जानता था।”
(सूरह अल-अलक़, 96:1-5)
🕯️ नुबुव्वत का ऐलान
यह पहली वही थी, जिससे नुबुव्वत का सिलसिला शुरू हुआ।
आप ﷺ काँपते हुए घर लौटे और सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया:
“मुझे ढाँक दो, मुझे ढाँक दो।”
उन्होंने आपको तसल्ली दी और कहा:
“ख़ुदा की क़सम! अल्लाह आपको कभी रुसवा नहीं करेगा। आप रिश्तेदारों का हक़ अदा करते हैं, कमजोरों की मदद करते हैं, मेहमाननवाज़ हैं और सच्चे हैं।”
फिर सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपको अपने चचा-ज़ाद वराक़ा बिन नौफल के पास ले गईं। उन्होंने तौरेत और इंजील पढ़ी थी।
वराक़ा ने कहा:
“यह वही नबी हैं जिनका ज़िक्र पिछली किताबों में है। आपके पास वही फ़रिश्ता आया है जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास आता था।”
🌸 सबक़
- नबी ﷺ का अख़लाक़ और अमानतदारी नुबुव्वत से पहले भी ज़ाहिर थी।
- तन्हाई में ग़ौर करना और अल्लाह की याद करना इंसान की रूहानी तरक़्क़ी का ज़रिया है।
- पहली वही ने इंसानियत को इल्म और हिकमत की तरफ़ बुलाया।
- यह वाक़िया हमें सिखाता है कि इस्लाम की बुनियाद इल्म, सच्चाई और रहमत पर रखी गई।
🌙 शबे क़द्र की फज़ीलत
- रात की इबादत का अज्र (ثواب):
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“जो शख्स ईमान और सवाब की उम्मीद के साथ शबे क़द्र में (ईबादत के लिए) खड़ा हुआ, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।”
(सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)
यानी सिर्फ़ इस रात में नमाज़, तिलावत या ज़िक्र करना ही इंसान को पिछले गुनाहों से पाक बना देता है।
- ग़म और परेशानियों से निजात:
जो लोग कर्ज़, तंगी, बीमारियों या घरेलू झगड़ों से परेशान हैं, उनके लिए शबे क़द्र की रात राहत का सबब है। इस रात अल्लाह तआला अपने बंदों की दुआएँ ज़रूर सुनता है और ग़म दूर कर देता है। - मस्जिद और घर दोनों में अज्र:
शबे क़द्र की इबादत सिर्फ़ मस्जिद में ही नहीं, बल्कि घर पर भी उसी तरह है। अगर कोई औरत या मरीज़ मस्जिद नहीं जा सकता, तो घर पर तिलावत, तस्बीह और दुआ करने से भी उसी का सवाब मिलता है। - एक खास दुआ का तौफ़ा:
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रज़ि. ने पूछा: “या रसूलल्लाह ﷺ, अगर मुझे मालूम हो जाए कि यह शबे क़द्र है, तो मैं क्या दुआ पढ़ूँ?”
आपने फ़रमाया:
“اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي”
“ऐ अल्लाह! तू माफ़ करने वाला है, माफ़ करना पसंद करता है, तो मुझे भी माफ़ कर दे।”
यह दुआ हर उस शख्स के लिए है जो अपने गुनाहों को धोना चाहता है और पाक दिल के साथ नई ज़िंदगी शुरू करना चाहता है।
शबे क़द्र में दुआओं की क़ुबूलियत
- दुआ का मकाम
शबे क़द्र वो रात है जब बंदे की ज़ुबान से निकली हुई दुआ फ़रिश्तों के ज़रिए सीधे अल्लाह तआला तक पहुंचती है।
कुरआन में है: “मुझसे दुआ करो, मैं तुम्हारी दुआ क़ुबूल करूंगा।” (सूरह ग़ाफ़िर: 60)
- गुनाहों से तौबा
यह वो रात है जब तौबा का दरवाज़ा खुला होता है।
हज़रत अली (रज़ि॰) फरमाते हैं: “शबे क़द्र में तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उसकी माँ ने उसे अभी पैदा किया हो।”
- दुआएं सिर्फ़ दुनियावी नहीं
इस रात में सिर्फ़ माल-दौलत या रोज़गार की दुआ न मांगे, बल्कि ईमान की मजबूती, नेक औलाद, अच्छे अख़लाक़ और आख़िरत की फ़लाह की दुआ ज़रूर करें।
- हज़रत आयशा (रज़ि॰) की दुआ
उन्होंने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा: “अगर मैं शबे क़द्र पा जाऊँ तो क्या दुआ पढ़ूं?”
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ुव्वुन तुहिब्बुल-अफ़्वा फ़अफ़ु अन्नी।”
(ऐ अल्लाह! तू माफ़ करने वाला है, माफ़ करना पसंद करता है, तो मुझे माफ़ फ़रमा)।
- मुसलमानों के लिए दुआ
इस रात में सिर्फ़ अपनी नहीं बल्कि पूरी उम्मत-ए-मुस्लिम के लिए दुआ करना चाहिए — बीमारों की शिफ़ा, करज़दारों की आसानी, बेसहारों की मदद और पूरी दुनिया में अमन की दुआ।
- फ़रिश्तों का आमीन कहना
हदीस में आता है कि जब बंदा दुआ करता है तो फ़रिश्ते उसके पीछे आमीन कहते हैं। और शबे क़द्र की रात, ये आमीन और भी क़रीबी होती है।
शबे क़द्र की रात में तौबा और गुनाहों की माफी
- तौबा का दरवाज़ा खुला है
शबे क़द्र वो रात है जिसमें अल्लाह तआला अपने बंदों के लिए रहमत के दरवाज़े खोल देते हैं।
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“जो शख़्स ईमान के साथ और अल्लाह से अज्र की उम्मीद रखते हुए शबे क़द्र की रात इबादत करता है, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)
- तौबा की अहमियत
इस रात इंसान चाहे कितना भी गुनाहगार क्यों न हो, अगर वो सच्चे दिल से तौबा करे तो अल्लाह उसकी तौबा कबूल कर लेते हैं।
अल्लाह तआला कुरआन में फ़रमाते हैं:
“ऐ ईमान वालों! तुम सब के सब अल्लाह की तरफ़ रुजू करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।” (सूरह नूर: 31)
- तौबा का तरीका
दिल से नीयत करना कि अब गुनाह की तरफ़ नहीं लौटेंगे।
ज़ुबान से इस्तिग़फ़ार करना: “अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़ंबिन वा अतीबु इलैह”
नमाज़, दुआ और आंसुओं के साथ अल्लाह से रहमत की भीख मांगना।
- सबसे अफ़ज़ल दुआ शबे क़द्र की
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा (रज़ि.) ने पूछा: “या रसूलल्लाह ﷺ, अगर मुझे मालूम हो जाए कि यह शबे क़द्र है तो मैं क्या दुआ करूँ?”
आप ﷺ ने फ़रमाया:
“اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي”
(अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ुव्वुन तुहिब्बुल-अफ़्व फा’फ़ु अन्नी)
हिन्दी में: “ऐ अल्लाह! तू बड़ा माफ़ करने वाला है, माफ़ी को पसंद करता है, तो मुझे भी माफ़ फ़रमा।”
- इस रात की नेमत
जो शख़्स इस रात रोकर अल्लाह से माफी मांग ले, उसका नाम गुनाहगारों की फ़ेहरिस्त से हटा दिया जाता है और नेक बंदों में लिखा जाता है।
इस रात की तौबा बंदे की पूरी ज़िंदगी बदल सकती है।
8 : शबे क़द्र में दुआ की कबूलियत
- शबे क़द्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इस रात में की जाने वाली हर दुआ अल्लाह तआला की बारगाह में कबूल होती है।
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा:
“या रसूलल्लाह ﷺ! अगर मुझे शबे क़द्र मिल जाए तो मैं कौन-सी दुआ करूं?”
तो आप ﷺ ने फरमाया:
“اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي”
(ऐ अल्लाह! तू माफ़ करने वाला है, माफ़ी को पसंद करता है, तो मुझे माफ़ फरमा।) - इस रात में इबादत करने वाला इंसान अपने गुनाहों की माफी मांग ले, क़र्ज़ की मुश्किल हल करने की दुआ करे, बीमारियों से शिफ़ा मांगे, रिश्तों में मोहब्बत और बरकत मांगे, और अपनी दुनिया-आख़िरत की भलाई के लिए दुआ करे।
- शबे क़द्र में फ़रिश्तों का नुज़ूल (उतरना) होता है और फ़रिश्ते मोमिनों की दुआओं पर “आमीन” कहते हैं। सोचिए, जब आसमान के फ़रिश्ते हमारी दुआ पर “आमीन” कहेंगे तो वह दुआ कैसे रद्द हो सकती है?
- इस रात को दुआ का खज़ाना खोल दिया जाता है, इसलिए हर मोमिन को चाहिए कि वह अपने लिए, अपने माँ-बाप के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए और पूरी उम्मत-ए-मुस्लिम के लिए दुआ करे।
- याद रखिए – शबे क़द्र सिर्फ़ इबादत की रात नहीं बल्कि दुआ और माफी की रात है। इस रात का असल तोहफ़ा यही है कि इंसान गुनाहों से पाक होकर अल्लाह के करीब हो जाए 9 : शबे क़द्र की रात और कुरआन की तिलावत
- कुरआन की नज़र में शबे क़द्र
कुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:
“हमने इसे (कुरआन) शबे क़द्र में नाज़िल किया। और तुम क्या जानते हो कि शबे क़द्र क्या है? शबे क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।”
(सूरह अल-क़द्र, 97:1-3)
इसका मतलब है कि इस रात की इबादत और तिलावत का सवाब हज़ार महीनों की इबादत से भी बढ़कर है।
- कुरआन की तिलावत का फायदा
इस रात में अगर कोई कुरआन पढ़े या सुनें, तो उसकी रूह और दिल को खास सुकून मिलता है।
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:
“शबे क़द्र में कुरआन की तिलावत करने वाले की हर आयत के बदले सवाब हज़ार महीनों के बराबर मिलता है।”
(सहीह बुखारी)
- तिलावत के साथ दुआ
सिर्फ़ पढ़ना ही काफी नहीं है, बल्कि पढ़ते समय दिल से दुआ और अल्लाह से नज़दीकी भी रखनी चाहिए।
पढ़ते समय सोचना कि अल्लाह तआला हमारे गुनाह माफ़ करें, हमारी मुश्किलें दूर करें, हमारे रिश्तों और आमदनी में बरकत दें।
- घर और मस्जिद में तिलावत
शबे क़द्र में कुरआन की तिलावत घर पर भी की जा सकती है।
और अगर मस्जिद जाएँ तो जमात के साथ पढ़ना या सुनना ज्यादा फज़ीलत वाला है।
- कुरआन पढ़ने की आदत बनाएं
शबे क़द्र सिर्फ़ एक रात ही नहीं, बल्कि इस रात की तिलावत हमें यह याद दिलाती है कि हर रोज़ कुरआन से ताल्लुक़ बनाए रखें।
यह इंसान के दिल, रूह और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बदलाव लाता है।