अगर आपके दिमाग में हर वक्त गंदे खयालात आते हैं तो आप समझ लें कि अल्लाह तबारक ताला आपको कुछ अता फरमाना चाहता है, कुछ देना चाहता है।
क्योंकि बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनके जेहन में हर वक्त गंदे और उल्टे सीधे खयालात आते हैं। बाज लोग तो ऐसे हैं कि जब वो नमाज में खड़े होते हैं तो फिर उनको खयालात आना शुरू हो जाते हैं। बाज लोग तो रकात ही भूल जाते हैं कि हमने कितनी रकात पड़ी। इतने ज्यादा खयालात का प्रेशर उनके माइंड के ऊपर रहता है। लेकिन आप जानते हैं कि इन खयालात की वजह से अल्लाह तआला हमें क्या देना चाहता है और आखिर ये खयालात आते क्यों हैं? और उससे भी ज्यादा इंपॉर्टेंट यह है कि यह खयालात कब आते हैं, इंसान के जहन में कब आते हैं? देखिए जो खयालात आते हैं उसकी तीन किस्में हुआ करती हैं। पहले वो खयालात होते हैं जो फरिश्ते की जानिब से होते हैं। दूसरे वो खयालात जो शैतान की जानिब से होते हैं। तीसरे वो खयालात जो खुद इंसान की अपनी फितरत होती है और इंसान की जो अपनी फितरत होती है ना वो नेकी वाली होती है। इंसान कोई भी कम गुनाह का। जब कोई बंदा काम करता है ना तो वो लज्जत के लिए करना तो चाहता है लेकिन दिल उसको उसका गवाही नहीं दे रहा होता है। क्योंकि इंसान की फितरत होती है वो कभी नहीं चाहती है की ये बंदा ये गुनाह करे तो हमारी फितरत कभी नहीं चाहेगी की हम गुनाह करें। लेकिन जो शैतानी खयालात और बसे हैं उसकी वजह से वो हावी होने की वजह से इंसान गुनाह की तरफ आता है और ये शैतान से और खयालात गंदे खयालात के लोगों के जहन में ज्यादातर डालता है। उन लोगों के जहन में डालता है जिनकी फितरत अच्छी होती है। बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो शराबी हैं, जो शराब खाने में पड़े हुए हैं। शैतान ने कभी उनको जाकर बहकाया कभी नहीं। उनके जहन में खयालात डाले नहीं क्यों? क्योंकि वो तो है ही ऑलरेडी बहके हुए। वो तो हैं ही गुनाहगार। वो तो है ही अल्लाह से दूर। वो तो शरियत से दूर है तो उनके जहन में खयालात नहीं आएंगे। जिस बंदे के जहन में गंदे खयालात आ रहे हैं ना, शैतान की तरफ से जो खयाल गंदे खयालात आ रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि वो बंदा जो है वो नेक है क्योंकि उसका बातिन नेक है वो तो शैतान उससे गुनाह करवाना चाहता है। लेकिन अंदरूनी तौर पर वो बंदा गुनाह के करीब जाना नहीं चाहता है क्योंकि अगर वह जाना चाह रहा होता तो वो जाता तो फिर शैतान उसके जहन में गंदे खयालात डाल कर उसको गुनाह की तरफ नहीं धकेलता। और फरिश्ता के जो फरिश्ते हमारे कांधों पर हैं, इकराम कातिब इन जो सारी चीजों को नोट करते हैं, लिखते हैं। हमने कोई अच्छा काम का इरादा किया जो सीधे सीधे कंधे पर बैठा हुआ फरिश्ता है, फौरन हमारे उस नेकी को लिख लेता है। और कितनी अजीब बात है अल्लाह का कितना करम है की हम नेकी का इरादा करते हैं तो फरिश्ता सवाब लिख लेता है और हम गुनाह का इरादा करें तो गुनाह हमारा नहीं लिखा जाता, गुनाह नहीं लिखा जाता। गुनाह जब लिखा जाता है जब हम गुनाह का काम कर ले और उसके बाद भी चंद लम्हात जो सीधी तरफ नेक, जो नेकियों को लिखने वाला जो फरिश्ता है वह बदी गुनाहों के लिखने वाले फरिश्ते को रोके रखता है कि रुक जाओ अभी रुक जाओ, शायद तौबा कर ले शायद तौबा कर ले और अगर बंदा फौरन तौबा कर ले गुनाह के बाद तो फिर उसके गुनाह को लिखा भी नहीं जाता है। ये अल्लाह तआला का खास फलों का नाम है। आपने रात में नीयत किया मैं सुबह ताज्जुब। की नमाज़ पढ़ रहा है और आप नहीं उठ पाए तो वह सवाब फरिश्ते ने लिख लिया। सवाब आपको मिल गया आपकी नीयत पर। लेकिन आपने दिन में इरादा किया, रात में चोरी करेंगे तो आपका गुनाह नहीं लिखा गया। उस वक्त तक नहीं लिखा जाएगा जब तक आप उस काम को, चोरी को गुनाह को कर ना ले। तो कितना बड़ा अल्लाह का खास फजल कर्म है कि नेकी के इरादे पर सवाब दे रहा है। जबकि गुनाह करने के बाद फिर उसका गुनाह लिखा जा रहा है तो यह अल्लाह तआला का खास करम है इस खास तौर पर इस उम्मते मोहम्मदिया के लिए हमारे लिए तो जो जेहन में फरिश्ते की तरफ से जो खयालात इंसान के जहन में आते हैं ना, जो अच्छे खयालात और नेकी के खयालात आते हैं तो शैतान उनको रोकने के लिए उसको गुनाह की तरफ माइल करता है। उसके जहन में खयालात डालता है कि इंसान ये गुनाह के काम करें। तो जब बंदे के ये हालत हो जाए कि वो नमाज में उसको खयालात आ रहे हैं, नमाज नहीं पढ़ पा रहे हैं, रखते भूल जा रहे हैं तो उनको दो काम करना चाहिए। पहला काम कि अपनी नमाज़ को तवील कर दे, नमाज़ को लंबा कर दे। यानी कि अगर किसी नमाज को दो रकात। को वो चार मिनट में पढ़ते हैं तो फिर उसको सात मिनट में कर दें। उसको आठ मिनट में कर दें। जितने खयाल आए शैतान की जानिब से उल्टे सीधे गंदे। वो। हम यह अहद कर लें कि अगर खयाल आएंगे तो हम नमाज को और ज्यादा। तवील करेंगे और देर तक पढ़ेंगे और खुशी के साथ पढ़ेंगे। फिर भी आएंगे तो फिर हम नमाज को दोहरा देंगे। अगर आपने दो बार नमाज को दोहरा दिया ना तो इब्लीस भी कहेगा कि भई यहां हमारा बस नहीं चलेगा क्योंकि हम तो ये चाह रहे हैं जो नमाज पढ़ रहा है ये खराब हो जाए। ये जरा से खयाल की वजह से नमाज दोहरा दे रहे हैं। जरा से खयाल की वजह से और नमाज को तवील किया जा रहा है तो वो फिर आपको नहीं आएगा। वो आजिज हो जाएगा। ये तो मैंने आपको एक ट्रिक बताई। शैतान के वश से बचने के लिए। दूसरी चीज यह है कि आप अगर ऐसे बहुत ज्यादा खयाल खयालात आ रहे हैं तो आप जो मन पढ़ के आप बाईं जानिब इशारा कर दें। और जब आपके जेहन में खयाल हर वक्त आ रहे और आप गुनाह की तरफ मायल होना चाह रहे हैं और फिर भी आप आपके जो भीतरी चीज है, जो फितरत है कि आप गुनाह नहीं कर रहे हैं, गुनाह नहीं कर रहे हैं, शैतान बेकार है के जहन में ख्याल डाल रहे। गुनाह के आप नहीं कर रहे तो यह आपके लिए बड़ी खुशकिस्मती की बात है। अल्लाह तआला ने आपको कुबूल कर लिया है। अल्लाह ताला आपको आखिरत फरमाना चाहता है कि आप इस लायक थे। आपका स्टेटस यह था कि आप अल्लाह के जब करीब होने लगे, जब शैतान की तरफ से ख्याल आता है, क्योंकि शैतान उन्हीं को बहकाता है। जो लोग नेक होते हैं, जो अल्लाह की तरफ आ रहे होते हैं तो शैतान उनको रोकता है, तो यह तो इंसान के कामयाब होने की अलामत होती है। तो उन जेहनी खयालात को बिल्कुल दिमाग से डिलीट करके हमें अपने उन कामों को करना है जो हमारे अंदर से दिल कह रहा है। जो फितरत हमारी करवाना चाहती है, जो फरिश्ते की जानिब से आने वाले अच्छे खयालात हैं उन चीजों को हमें करना चाहिए ताकि शैतान का जोर ना चले और यह तो बंदे की मकबूलियत की निशानी होती है कि यह बंदा इस लायक था जभी तो उसको शैतान बहका रहा है वरना हर इंसान को शैतान नहीं चाहता। तमाम जुआरी, शराबी और बे नमाजी फांसी हाजिर घूम रहे हैं। उन्हें उन शैतानों से कोई मतलब नहीं। वो तो खुश होता है की भाई ये तो हमारा काम खुद ही कर रहे। हमें तो इन्हें बहकाने की जरूरत ही नहीं है। अभी जरूरत है जो मदरसा। मदरसा मिन्हाज उल हुसैन गाजी मदारिया मकनपुर शरीफ में जो कायम है चल रहा है तो उसका एक सिर्फ एक हॉल है जिसमें बच्चे रहते भी हैं। जो बैरूनी बच्चे हैं वो वही रहते हैं, वही खाते हैं, वही पीते हैं जिनके रहने का भी कोई प्रॉपर, कोई उनके रहने का कोई हॉल या कोई रहने के लिए हॉस्टल, कमरे वगैरह मौजूद नहीं है। जिसकी छत पर इंशाल्लाह ताला। अगर कुछ कमरे बन जाएं तो बच्चों के रहने में और साथ जा के वहां पर रुकने में कुछ आसानी हो जाए। क्योंकि पूरा मदरसा जो बना है अल्लाह रब्बुल इज्जत की कसम खा के बता रहा हूं कि बगैर किसी फंडिंग बगैर किसी चंदे के बना है। जो अल्लाह ने मुझसे काम लिया, मैंने खुद काम किया और यह आपको शौकत के लिए नहीं बता रहा हूं बल्कि सिर्फ आपके हौसले के लिए बता रहा हूं तो उसके लिए तामीर कुछ काम होना है। आप लोगों से खुसूसी गुजारिश है कि इसमें इस कार्य में ताऊन करें। इस काम में हिस्सा लें ताकि हमारा यह जो काम है, यह जो मिशन है यह कंप्लीट हो सके। अल्लाह तआला इसका सिला हमको अता फरमाए।