Musalman Qurbani kyun Karte Hain? Bakra Eid Kyon Manate Hai | Hazrat Ibrahim (AS) Wazifa Power

  1. क़ुर्बानी का मतलब और अहमियत

क़ुर्बानी का मतलब है अल्लाह की रज़ा (ख़ुशी) के लिए अपनी अज़ीज़ (प्रिय) चीज़ को छोड़ देना।

मुसलमान ईदुल-अज़्हा के मौके पर क़ुर्बानी कर के हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत को ज़िंदा करते हैं, जिन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे को क़ुर्बान करने का इरादा किया।

  1. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आज़माइश

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ख्वाब में देखा कि वह अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में क़ुर्बान कर रहे हैं।

उन्होंने फ़ौरन अल्लाह का हुक्म माना और बेटे को साथ लेकर निकल पड़े।

बेटे ने भी इताअत का सबूत दिया।

जब ज़बह करने लगे तो अल्लाह तआला ने उनका इख़लास (निय्यत और सच्चाई) क़ुबूल कर लिया और एक दुंबा (मेंढा) आसमान से भेजा।

यह वाक़िया कुरआन की सूरह साफ़्फ़ात (37:102-107) में बयान किया गया है।

  1. क़ुर्बानी का मक़सद

असल मक़सद जानवर को ज़बह करना नहीं, बल्कि अल्लाह के हुक्म के आगे सर झुका देना है।

क़ुर्बानी इंसान को नफ़्स (अपने अंदर की ख्वाहिशों) पर क़ाबू पाना सिखाती है।

इससे तक़्वा (परहेज़गारी) पैदा होती है और इबादत की रूह (आत्मा) को बल मिलता है।

  1. क़ुर्बानी के शरी’ई उसूल

सिर्फ़ वही जानवर ज़बह होते हैं जो शरीअत के मुताबिक़ मुकम्मल (पूरे) और सही-सलामत हों: जैसे बकरी, दुंबा, गाय या ऊँट।

क़ुर्बानी ईद के दिन से लेकर अगले दो दिन (10, 11, 12 ज़िल-हिज्जा) तक की जाती है।

गोश्त को तीन हिस्सों में तक़सीम किया जाता है:

  1. एक हिस्सा खुद के लिए
  2. दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए
  3. तीसरा हिस्सा ग़रीबों और मोहताजों (ज़रूरतमंदों) के लिए
  4. क़ुर्बानी का समाजी पैग़ाम

क़ुर्बानी हमें ईसार (त्याग), हमदर्दी (सहानुभूति), और मुसावात (बराबरी) सिखाती है।

यह मौका होता है कि हम ग़रीबों के साथ ख़ुशियाँ बाँटें और उनके चेहरों पर मुस्कुराहट लाएँ।


📖 कुरआन से दलीलें

  1. सूरह अल-हज्ज (22:37):
    “अल्लाह तक न उनका गोश्त पहुँचता है और न उनका खून, बल्कि उसकी तरफ़ तुम्हारा तक़्वा पहुँचता है।”
    ➤ यह आयत बताती है कि अल्लाह को हमारी क़ुर्बानी का मांस या खून नहीं चाहिए, बल्कि हमारी निय्यत और परहेज़गारी चाहिए।
  2. सूरह अल-हज्ज (22:36):
    “हमने तुम्हारे लिए क़ुर्बानी के जानवर बनाए हैं, ताकि तुम अल्लाह का नाम लो और उन्हें ज़बह करो। फिर उनमें से खुद भी खाओ और मोहताजों को भी खिलाओ।”
    ➤ यह आयत क़ुर्बानी के सामाजिक पहलू को उजागर करती है।
  3. सूरह अल-कौसर (108:2):
    “तो अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो।”
    ➤ यह आयत बताती है कि क़ुर्बानी अल्लाह की इबादत का हिस्सा है।

📜 हदीस से दलीलें

  1. सहीह बुखारी:
    “जो शख्स ईद की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी करता है, उसकी क़ुर्बानी नहीं मानी जाती।”
    ➤ यह हदीस बताती है कि क़ुर्बानी का सही वक्त ईद की नमाज़ के बाद है।
  2. सहीह मुस्लिम:
    “हर उम्मत के लिए हमने क़ुर्बानी का एक तरीका मुक़र्रर किया है, ताकि वे अल्लाह का नाम लें उन जानवरों पर जो उसने उन्हें दिया है।”
    ➤ यह हदीस क़ुर्बानी की अहमियत और उसका मक़सद बताती है।

✅ नतीजा

क़ुर्बानी कोई रस्म नहीं, बल्कि अल्लाह से क़ुर्ब (नज़दीकी) हासिल करने का ज़रिया है।
यह हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की इबादत, इताअत और सुपुर्दगी (समर्पण) की ऐसी मिसाल है, जो हमें सिखाती है कि अगर अल्लाह का हुक्म हो, तो हमें अपनी सबसे अज़ीज़ चीज़ भी क़ुर्बान करने में देर नहीं करनी चाहिए

बकरा ईद (ईद उल अज़्हा) क्यों मनाई जाती है?

  1. बकरा ईद का मतलब

बकरा ईद को ईद उल अज़्हा भी कहा जाता है, जिसका मतलब है “क़ुर्बानी की ईद”।

यह मुस्लिमों का एक बड़ा त्यौहार है जिसमें जानवर (जैसे बकरा, भेड़, गाय, ऊँट) अल्लाह की रज़ा के लिए ज़बाह किए जाते हैं।

यह त्यौहार हर साल ज़िल-हिज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाता है।

  1. कुरआन में बकरा ईद की हिदायत

अल्लाह तआला ने कुरआन में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी की कहानी बताई है (सूरह साफ़्फ़ात 37:102-107)।

हज़रत इब्राहीम ने अल्लाह के हुक्म की पूरी इताअत की और अपने प्यारे बेटे इस्माईल को क़ुर्बानी के लिए तैयार किया।

अल्लाह ने उनके इमान और हुक्म की पालनशीलता को देखकर उनके बदले में एक बड़ा जानवर भेजा।

इसलिए, हम भी हर साल इसी इबादत की नकल करते हैं।

  1. हदीस में बकरा ईद का महत्व

पैग़ंबर मुहम्मद साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“हर उम्मत के लिए क़ुर्बानी का तरीका मुकर्रर किया गया है, तो वह अल्लाह का नाम लेकर क़ुर्बानी करे।” (सहीह मुस्लिम)

क़ुर्बानी की इबादत से नफ़्स (अपने अंदर की लालच) पर क़ाबू पाया जाता है और अल्लाह के करीब पहुँचा जाता है।

  1. दुनियावी मतलब और फायदे

सामाजिक मेलजोल: बकरा ईद के दिन लोग ग़रीबों के साथ खाना बाँटते हैं, जिससे समाज में भाईचारा बढ़ता है।

ख़ुशी और त्याग: इंसान अपनी सबसे कीमती चीज़ (जानवर) अल्लाह के लिए छोड़ देता है, जो कि त्याग और बलिदान की सीख है।

आर्थिक मदद: इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोग भी मांस खाते हैं, जिससे उनकी जिंदगी में खुशियाँ आती हैं।

परिवार और समाज का मिलना: परिवार और रिश्तेदार एक साथ होते हैं, दोस्ती और मोहब्बत की फिज़ा बनती है।

  1. बकरा ईद मनाने का तरीका

ईद की नमाज़ के बाद जानवर की क़ुर्बानी की जाती है।

मांस के तीन हिस्से बाँटे जाते हैं: खुद के लिए, रिश्तेदारों के लिए, और ग़रीबों के लिए।

यह तरीका समाज में समानता और परोपकार को बढ़ावा देता है।


कुरआन की आयतें

सूरह अल-हज्ज (22:36):
“और हमने तुम्हारे लिए क़ुर्बानी के जानवर बनाए हैं ताकि तुम अल्लाह का नाम लेकर उन्हें ज़बाह करो और उनमें से खुद भी खाओ और मोहताजों को भी खिलाओ।”
➤ इससे पता चलता है कि क़ुर्बानी सिर्फ़ जानवर ज़बाह करना नहीं, बल्कि गरीबों की मदद करना भी है।

सूरह अल-हज्ज (22:37):
“अल्लाह तक न उनका मांस पहुँचता है, न उनका खून, बल्कि अल्लाह तक तुम्हारा तक़्वा पहुँचता है।”
➤ क़ुर्बानी का असली मकसद अल्लाह से डरना और उसके हुक्म मानना है।


हदीस

पैग़ंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“क़ुर्बानी करने वाले के बाल, खून और मांस में से कोई भी अल्लाह के पास नहीं पहुँचता, लेकिन उसका तक़्वा जरूर पहुँचता है।” (सहीह मुस्लिम)

क़ुर्बानी से इंसान के गुनाह माफ होते हैं और उसे अल्लाह की नज़दीक़ी मिलती है।


नतीजा:

बकरा ईद मुसलमानों का एक ऐसा त्योहार है जो हज़रत इब्राहीम की आज्ञाकारिता, त्याग और अल्लाह से प्रेम की मिसाल है। यह इबादत इंसान को अपने नफ़्स पर काबू पाने और समाज के जरूरतमंदों की मदद करने की तालीम देती है।

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